कृष्ण और यादवों का ब्राह्मणीकरण
कृष्ण और यादवों का ब्राह्मणीकरण
इस देश की पिछड़ी जातियों में शुमार अहीर व यादव कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं। इस जाति के बीच कृष्ण का नायकत्व ऐसा है कि अहीर और कृष्ण पर्यायवाची बन गए हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथों में इस यादव नायक का नाम कृष्ण, श्याम, गोपाल आदि आया है, जो यादवों के शारीरिक रंग एवं व्यवसाय से मेल खाने वाला है।
बहुसंख्यक यादव सांवले या काले होते हैं, जो कि इस देश के मूल निवासियों अर्थात् अनार्यों का रंग है, के होंगे, तो निश्चय ही इनके महामानव या नायक का नाम कृष्ण या श्याम होगा, जिसका शाब्दिक अर्थ काला, करिया या करियवा होगा। देश एवं हिंदू धर्म की वर्ण-व्यवस्था सवर्ण-अवर्ण या काले-गोरे के आधार पर बनी है।
आर्यों और अनार्यों के संदर्भ में प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा की प्रसिद्ध पुस्तक ‘आर्य संस्कृति की खोज’ का यह अंश उल्लेखनीय है: ”
1800 ईसा पूर्व के बाद छोटी-छोटी टोलियों में आर्यों ने भारतवर्ष में प्रवेश किया।
ऋग्वेद और अवेस्ता दोनों प्राचीनतम ग्रंथों में आर्य शब्द पाया जाता है।
ईरान शब्द का संबंध आर्य शब्द से है।
ऋग्वैदिक काल में इंद्र की पूजा करने वाले आर्य कहलाते थे।
ऋग्वेद के कुछ मंत्रों के अनुसार आर्यों की अपनी अलग जाति है।
जिन लोगों से वे लड़ते थे उनको काले रंग का बतया गया है। आर्यों को मानुषी प्रजा कहा गया है जो अग्नि वैश्वानर की पूजा करते थे और कभी-कभी काले लोगों के घरों में आग लगा देते थे।
आर्यों के देवता सोम के विषय में कहा गया है कि वह काले लोगों की हत्या करता था।
उत्तर-वैदिक और वैदिकोत्तर साहित्य में आर्य से उन तीन वर्णों का बोध होता था जो द्विज कहलाते थे। शूद्रों को आर्य की कोटि में नहीं रखा जाता था। आर्य को स्वतंत्र समझा जाता था और शूद्र को परतंत्र।”
इंद्र विरुद्ध कृष्ण
हिंदुओं के प्रमुख धर्मग्रंथ ऋग्वेद का मूल देवता इंद्र है।
इसके 10,552 श्लोकों में से 3,500 अर्थात् ठीक एक-तिहाई इंद्र से संबंधित हैं।
इंद्र और कृष्ण का मतांतर एवं युद्ध सर्वविदित है। प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत में वेदव्यास ने कृष्ण को विजेता बताया है तथा इंद्र का पराजित होना दर्शाया है।
इंद्र और कृष्ण का यह युद्ध आमने-सामने लड़ा गया युद्ध नहीं है।
इस युद्ध में कृष्ण द्वारा इंद्र की पूजा का विरोध किया जाता है,
जिससे कुपित इंद्र अतिवृष्टि कर मथुरावासियों को डुबोने पर आमादा हैं। कृष्ण गोवर्धन पर्वत के जरिए अपने लोगों को इंद्र के कोप से बचा लेते हैं।
इंद्र थककर पराजय स्वीकार कर लेता है। इस संपूर्ण घटनाक्रम में कहीं भी आमने-सामने युद्ध नहीं होता है लेकिन अन्य हिंदू धर्मग्रंथों, विशेषकर ऋग्वेद में इस युद्ध के दौरान जघन्य हिंसा का जिक्र है तथा इंद्र को विजेता दिखाया गया है।
ऋग्वेद मंडल-1 सूक्त 130 के 8वें श्लोक में कहा गया है कि – ”हे इंद्र! युद्ध में आर्य यजमान की रक्षा करते हैं। अपने भक्तों की अनेक प्रकार से रक्षा करने वाले इंद्र उसे समस्त युद्धों में बचाते हैं एवं सुखकारी संग्रामों में उसकी रक्षा करते हैं। इंद्र ने अपने भक्तों के कल्याण के निमित्त यज्ञद्वेषियों की हिंसा की थी।
👉इंद्र ने कृष्ण नामक असुर की काली खाल उतारकर उसे अंशुमती नदी के किनारे मारा और भस्म कर दिया। इंद्र ने सभी हिंसक मनुष्यों को नष्ट कर डाला।”
ऋग्वेद के मंडल-1 के सूक्त 101 के पहले श्लोक में लिखा है कि: ”गमत्विजों, जिस इंद्र ने राजा ऋजिश्वा की मित्रता के कारण कृष्ण असुर की गर्भिणी पत्नियों को मारा था, उन्हीं के स्तुतिपात्र इंद्र के उद्देश्य से हवि रूप अन्न के साथ-साथ स्तुति वचन बोला। वे कामवर्णी दाएं हाथ में बज्र धारण करते हैं। रक्षा के इच्छुक हम उन्हीं इंद्र का मरुतों सहित आह्वान करते हैं।”
इंद्र और कृष्ण की शत्रुता की भी ऋणता को समझने के लिए ऋग्वेद के मंडल 8 सूक्त 96 के श्लोक 13,14,15 और 17 को भी देखना चाहिए (मूल संस्कृत श्लोक देखें शांति कुंज प्रकाशन, गायत्री परिवार, हरिद्वार द्वारा प्रकाशित वेद में)
ऋगवेद के श्लोक 13: शीघ्र गतिवाला एवं दस हजार सेनाओं को साथ लेकर चलने वाला कृष्ण नामक असुर अंशुमती नदी के किनारे रहता था। इंद्र ने उस चिल्लाने वाले असुर को अपनी बुद्धि से खोजा एवं मानव हित के लिए वधकारिणी सेनाओं का नाश किया।
श्लोक 14: इंद्र ने कहा-मैंने अंशुमती नदी के किनारे गुफा में घूमने वाले कृष्ण असुर को देखा है, वह दीप्तिशाली सूर्य के समान जल में स्थित है। हे अभिलाषापूरक मरुतो, मैं युद्ध के लिए तुम्हें चाहता हूं। तुम यु़द्ध में उसे मारो।
श्लोक 15: तेज चलने वाला कृष्ण असुर अंशुमती नदी के किनारे दीप्तिशाली बनकर रहता था। इंद्र ने बृहस्पति की सहायता से काली एवं आक्रमण हेतु आती हुई सेनाओं का वध किया।
श्लोक 17: हे बज्रधारी इंद्र! तुमने वह कार्य किया है। तुमने अद्वितीय योद्धा बनकर अपने बज्र से कृष्ण का बल नष्ट किया। तुमने अपने आयुधों से कुत्स के कल्याण के लिए कृष्ण असुर को नीचे की ओर मुंह करके मारा था तथा अपनी शक्ति से शत्रुओं की गाएं प्राप्त की थीं। ( अनुवाद-वेद, विश्व बुक्स, दिल्ली प्रेस, नई दिल्ली)
क्या कृष्ण और यादव असुर थे?
ऋग्वेद के इन श्लोकों पर कृष्णवंशीय लोगों का ध्यान शायद नहीं गया होगा। यदि गया होता तो बहुत पहले ही तर्क-वितर्क शुरू हो गया होता। वेद में उल्लेखित असुर कृष्ण को यदुवंश शिरोमणि कृष्ण कहने पर कुछ लोग शंका व्यक्त करेंगे कि हो सकता है कि दोनों अलग-अलग व्यक्ति हों, लेकिन जब हम सम्पूर्ण प्रकरण की गहन समीक्षा करेंगे तो यह शंका निर्मूल सिद्ध हो जाएगी, क्योंकि यदुकुलश्रेष्ठ का रंग काला था, वे गायवाले थे और यमुना तट के पास उनकी सेनाएं भी थीं। वेद के असुर कृष्ण के पास भी सेनाएं थीं। अंशुमती अर्थात् यमुना नदी के पास उनका निवास था और वह भी काले रंग एवं गाय वाला था। उसका गोर्वधन गुफा में बसेरा था।यदुवंशी कृष्ण एवं असुर कृष्ण दोनों का इंद्र से विरोध था। दोनों यज्ञ एवं इंद्र की पूजा के विरुद्ध थे। वेद में कृष्ण एवं इंद्र का यमुना के तीरे युद्ध होना, कृष्ण की गर्भिणी पत्नियों की हत्या, सम्पूर्ण सेना की हत्या, कृष्ण की काली छाल नोचकर उल्टा करके मारने और जलाने, उनकी गायों को लेने की घटना इस देश के आर्य-अनार्य युद्ध का ठीक उसी प्रकार से एक हिस्सा है, जिस तरह से महिषासुर, रावण, हिरण्यकष्यप, राजा बलि, बाणासुर, शम्बूक, बृहद्रथ के साथ छलपूर्वक युद्ध करके उन्हें मारने की घटना को महिमामंडित किया जाना। इस देश के मूल निवासियों को गुमराह करने वाले पुराणों को ब्राह्मणों ने इतिहास की संज्ञा देकर प्रचारित किया। इसी भ्रामक प्रचार का प्रतिफल है कि बहुजनों से उनके पुरखों को बुरा कहते हुए उनकी छल कर हत्या करने वालों की पूजा करवाई जा रही है।
यदुवंशी कृष्ण के असुर नायक या इस देश के अनार्य होने के अनेक प्रमाण आर्यों द्वारा लिखित इतिहास में दर्ज है। आर्यों ने अपने पुराण, स्मृति आदि लिखकर अपने वैदिक या ब्राह्मण धर्म को मजबूत बनाने का प्रयत्न किया है। पद्म पुराण में कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध एवं राजा बलि की पौत्री उषा के विवाह का प्रकरण पढ़ने को मिलता है। कृष्ण के पौत्र की पत्नी उषा के पिता का नाम बाणासुर था। बाणासुर के पूर्वज कुछ यूं थे-असुर राजा दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप के पुत्र विरोचन के पुत्र बलि के पुत्र बाणासुर थे। उषा का यदुकुल श्रेष्ठ कृष्ण एवं रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध से प्रेम हो गया। अनिरुद्ध अपनी प्रेमिका उषा से मिलने बाणासुर के महल में चले गए। बाणासुर द्वारा अनिरुद्ध के अपने महल में मिलने की सूचना पर अनिरुद्ध को पकड़कर बांधकर पीटा गया।
इस बात की जानकारी होने पर अनिरुद्ध के पिता प्रद्युम्न और वाणासुर में घमासान हुआ। जब बाणासुर को पता चला कि उनकी पुत्री उषा और अनिरुद्ध आपस में प्रेम करते हैं तो उन्होंने युद्ध बंद कर दोनों की शादी करा दी। इस तरह से कृष्ण और असुर राज बलि एवं बाणासुर और कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न आपस में समधी हुए। अब सवाल उठता है कि यदि कृष्ण असुर कुल यानी इस देश के मूल निवासी नहीं होते तो उनके कुल की बहू असुर कुल की कैसे बनती? श्रीकृष्ण और राजा बलि दोनों के दुश्मन इंद्र और उपेंद्र आर्य थे। कृष्ण ने इंद्र से लड़ाई लड़ी तो बालि ने वामन रूपधार उपेंद्र (विष्णु) बलि से। राजा बलि के संदर्भ में आर्यों ने जो किस्सा गढ़ा है वह यह है कि राजा बलि बड़े प्रतापी, वीर किंतु दानी राजा थे। आर्य नायक विष्णु आदि राजा बलि को आमने-सामने के युद्ध में परास्त नहीं कर पा रहे थे, सो विष्णु ने छल करके राजा बलि की हत्या की योजना बनाई।
विष्णु वामन का रूप धारण कर राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। महादानी एवं महाप्रतापी राजा बलि राजी हो गए। पुराण कथा के मुताबिक वामन वेशधारी विष्णु ने एक पग में धरती, एक पग में आकाश तथा एक पग में बलि का शरीर नापकर उन्हें अपना दास बनाकर मार डाला। कुछ विद्वान कहते हैं कि वामन ने राजा बलि के सिंहासन को दो पग में मापकर कहा कि सिंहासन ही राजसत्ता का प्रतीक है इसलिए हमने तुम्हारा सिंहासन मापकर संपूर्ण राजसत्ता ले ली है। एक पग जो अभी बाकी है उससे तुम्हारे शरीर को मापकर तुम्हारा शरीर लूंगा। महादानी राजा बलि ने वचन हार जाने के कारण अपनी राजसत्ता वामन विष्णु को बिना युद्ध किए सौंप दी तथा अपना शरीर भी समर्पित कर दिया। वामन वेशधारी विष्णु ने एक लाल धागे से हाथ बांधकर राजा बलि को अपने शिविर में लाकर मार डाला। इस लाल धागे से हाथ बांधते वक्त विष्णु ने बलि से कहा था कि तुम बहुत बलवान हो, तुम्हारे लिए यह धागा प्रतीक है कि तुम हमारे बंधक हो। तुम्हें अपने वचन के निर्वाह हेतु इस धागा को हाथ में बांधे रखना है।
हजारों वर्ष बाद भी इस लाल धागे को इस देश केमूल निवासियों के हाथ में बांधने का प्रचलन है जिसे रक्षासूत्र या कलावा कहते हैं। इस रक्षासूत्र या कलावा को बांधते वक्त पुरोहित उस हजार वर्ष पुरानी कथा को श्लोक में कहता है कि : ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामि प्रतिबद्धामि रक्षे मा चल मा चल।’ (अर्थात् जिस तरह हमने दानवों के महाशक्तिशाली राजा बलि को बांधा है उसी तरह हम तुम्हें भी बांधते हैं। स्थिर रह, स्थिर रह।)
पुराणों के प्रमाण
दरअसल, इन पौराणिक किस्सों से यही प्रमाणित होता है कि कृष्ण, राजा बलि, राजा महिषासुर, राजा हिरण्यकश्यप आदि से विष्णु ने विभिन्न रूप धरकर इस देश के मूल निवासियों पर अपनी आर्य संस्कृति थोपने के लिए संग्राम किया था। इंद्र एवं विष्णु आर्य संस्कृति की धुरी हैं तो कृष्ण और बलि अनार्य संस्कृति की।
बहरहाल, कृष्ण को क्षत्रिय या आर्य मानने वाले लोगों को कृष्ण काल से पूर्व राम-रावण काल में भी अपनी स्थिति देखनी चाहिए। महाकाव्यकार वाल्मीकि ने रामायण में भी यादवों को पापी और लुटेरा बताया है तथा राम द्वारा किए गए यादव राज्य दु्रमकुल्य के विनाश को दर्शाया है।
वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड के 22वें अध्याय में राम एवं समुद्र का संवाद है। राम लंका जाने हेतु समुद्र से कहते हैं कि तुम सूख जाओ, जिससे मैं समुद्र पार कर लंका चला जाऊं। समुद्र राम को अपनी विवशता बताता है कि मैं सूख नहीं सकता तो राम कुपित होकर प्रत्यंचा पर वाण चढ़ा लेते हैं। समुद्र राम के समक्ष उपस्थित होकर उन्हें नल-नील द्वारा पुल बनाने की राय देता है। राम समुद्र की राय पर कहते हैं कि वरुणालय मेरी बात सुनो। मेरा यह यह वाण अमोध है। बताओ इसे किस स्थान पर छोड़ा जाए। राम की बात सुनकर समुद्र कहता है कि ‘प्रभो! जैसे जगत् में आप सर्वत्र विख्यात एवं पुण्यात्मा हैं, उसी प्रकार मेरे उत्तर की ओर दु्रमकुल्य नाम से विख्यात एक बड़ा पवित्र देश है, वहां आभीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सबके सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं। उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं सह नहीं सकता, श्रीराम! आप अपने इस उत्तम वाण को वहीं सफल कीजिए। महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के बताए अनुसार उसी देश में वह अत्यंत प्रज्जवलित वाण छोड़ दिया। वह वाण जिस स्थान पर गिरा था वह स्थान उस वाण के कारण ही पृथ्वी में दुर्गम मरुभूमि के नाम से प्रसिद्ध हुआ।’
राम-रावण काल में यादवों के राज्य दु्रमकुल्य को समुद्र द्वारा पवित्र बताने तथा वहां निवास करने वाले यादवों को पापी एवं भयानक कर्म वाला लुटेरा कहने से सिद्ध हो जाता है कि यादव न आर्य हैं और न क्षत्रिय, अन्यथा वाल्मीकि और समुद्र इन्हें पापी नहीं कहते। जिस तरह से इस देश में दलितों को तालाब, कुओं आदि से पानी पीने नहीं दिया जाता था और डॉ. आम्बेडकर को महाड़ तालाब आंदोलन करना पड़ा, क्या उससे भी अधिक वीभत्स घटना यादवों के दु्रमकुल्य राज्य के साथ घटित नहीं हुई है? रामचरितमानस में भी तुलसीदास ने उत्तर कांड के 129 (1) में लिखा है कि आभीर यवन, किरात खस, स्वचादि अति अधरुपजे। अर्थात् अहीर, मुसलमान, बहेलिया, खटिक, भंगी आदि पापयोनि हैं। इसी प्रकार व्यास स्मृति का रचयिता एक श्लोक में कहता है कि ‘बढ़ई, नाई, ग्वाला, चमार, कुम्भकार, बनिया, चिड़ीमार, कायस्थ, माली, कुर्मी, भंगी, कोल और चांडाल ये सभी अपवित्र हैं। इनमें से एक पर भी दृष्टि पड़ जाए ता सूर्य दर्शन करने चाहिए तब द्धिज जाति अर्थात् बड़ी जातियों का एक व्यक्ति पवित्र होता है।’
सहमत हैं इतिहासविद्
इसी कारण महान इतिहासकार डीडी कौशाम्बी ने अपनी पुस्तक ‘प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता’ में लिखा है-‘ऋग्वेद में कृष्ण को दानव और इंद्र का शत्रु बताया गया है और उसका नाम श्याम, आर्य पूर्व लोगों का द्योतक है। कृष्णाख्यान का मूल आधार यह है कि वह एक वीर योद्धा था और यदु कबीले का देवता था। परंतु सूक्तकारों ने पंजाब के कबीलों में निरंतर चल रहे कलह से जनित तत्कालीन गुटबंदी के अनुसार, इन यदुओं को कभी धिक्कारा है तो कभी आशीर्वाद दिया है। कृष्ण शाश्वत भी हैं और मामा कंस से बचाने के लिए उसे गोकुल में पाला गया था। इस स्थानांतरण ने उसे उन अहीरों से भी जोड़ दिया जो ईसा की आरंभिक सदियों में ऐतिहासिक एवं पशुपालक लोग थे और जो आधुनिक अहीर जाति के पूर्वज हैं। कृष्ण गोरक्षक था, जिन यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी, उनमें कृष्ण का कभी आह्वान नहीं हुआ है, जबकि इंद्र, वरुण तथा अन्य वैदिक देवताओं का सदैव आह्वान हुआ है। ये लोग अपने पैतृक कुलदेवता को चाहे जिस चीज की बलि भेंट करते रहे हों पर दूसरे कबीलों द्वारा उनकी इस प्रथा को अपनाने का कोई कारण नहीं था। दूसरी तरफ जो पशुचर लोग कृषि जीवन को अपना रहे थे, उन्हें इंद्र की बजाय कृष्ण को स्वीकार करने में निश्चित ही लाभ था। सीमा प्रदेश के उच्च वर्ग के लोग गौरवर्ण के थे। उनका मत था कि काला आदमी बाजार में लगाए गए काले बीजों के ढेर की भांति है और उसे शायद ही कोई ब्राह्मण समझने की भूल कर सकता है। कन्या का मूल्य देकर विवाह करने का पश्चिमोत्तर में जो रिवाज था, वह भी पूर्ववासियों को विकृत प्रतीत होता था। कन्या हरण की प्रथा थी, जिसका महाभारत के अनुसार कृष्ण के कबीले में प्रचलन था और ऐतिहासिक अहीरों ने भी जिसे चालू रखा और जो पूर्ववासियों को विकृत लगती थी। अंततोगत्वा ब्राह्मण धर्मग्रंथों ने इन दोनों प्रकार के विवाहों को अनार्य प्रथा में कहकर निषिद्ध घोषित कर दिया।’
डीडी कौशाम्बी अपनी पुस्तक में स्पष्ट करते हैं कि कृष्ण आर्यों की पशु बलि के सख्त विरोधी थे यानी गोरक्षक थे। कृष्ण की बहन सुभद्रा से अर्जुन द्वारा भगाकर शादी करने का उल्लेख् मिलता है। इस प्रकार कौशाम्बी ने भी कृष्ण को अनार्य अर्थात् असुर माना है। इतिहासकार भगवतशरण उपाध्याय ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक ‘खून के छींटे इतिहास के पन्नों पर’ में लिखा है कि ‘क्षत्रियों ने ब्राह्मणों के देवता इंद्र और ब्राह्मणों के साधक यज्ञानुष्ठानों के शत्रु कृष्ण को देवोत्तर स्थान दिया। उन्होंने उसे जो क्षत्रिय भी न था, यद्यपि क्षत्रिय बनने का प्रयत्न कर रहा था को विष्णु का अवतार माना और अधिकतर क्षत्रिय ही उस देव दुर्लभ पद के उपयुक्त समझे गए।’
उपाध्याय ने इसे भी स्पष्ट कर दिया है कि कृष्ण ब्राह्मणों के देवता इंद्र और उनके यज्ञानुष्ठानों के प्रबल विरोधी थे जबकि वे क्षत्रिय नहीं थे। कृष्ण के बारे में उपाध्याय ने लिखा है कि वे क्षत्रिय बनने का प्रयत्न कर रहे थे। अब तक जो भी प्रमाण मिले हैं वे यही सिद्ध करते हैं कि अहीर और कृष्ण आर्यजन नहीं थे। कृष्ण और अहीर इस देश के मूलनिवासी काले लोग थे। इनका आर्यों से संघर्ष चला है।
ऋग्वेद कहता है कि ‘निचुड़े हुए, गतिशील, तेज चलने वाले व दीप्तिशाली सोम काले चमड़े वाले लोगों को मारते हुए घूमते हैं, तुम उनकी स्तुति करो।’ (मंडल 1 सूक्त 43)
इस आशय के अनेक श्लोक ऋग्वेद में हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि आर्य लोग भारत के मूल निवासियों से किस हद तक नफरत करते थे तथा उन्होंने चमड़ी के रंग के आधार पर इनकी हत्याएं की हैं। यादवश्रेष्ठ कृष्ण काली चमड़ी वाले थे। इंद्र और यज्ञ विरोधी होने के लिहाज से ऋग्वेद के अनुसार उनका संघर्ष अग्नि, सोम, इंद्र आदि से होना स्वाभाविक है।
जिनसे जीत नहीं सकते उन्हें अपने में मिला लो
ऋग्वेद से लेकर तमाम शास्त्रों में अहीर व अहीर नायक कृष्ण अनार्य कहे गए हैं लेकिन इसके बावजूद जब इस देश के मूल निवासियों में कृष्ण का प्रभाव कायम रहा तो इन आर्यों ने कृष्ण के साथ नृशंसता बरतने के बावजूद उन्हें भगवान बना दिया और कृष्णवंशीय बहादुर जाति को अपने सनातन पंथ का हिस्सा बनाने में कामयाबी हासिल कर ली।
जब कृष्ण अनार्य थे तो गीतोपदेश का सवाल उठना लाजिमी है। गीतोपदेश में कृष्ण ने खुद भगवान होने, ब्राह्मण श्रेष्ठता, वर्ण व्यवस्था बनाने जैसे अनेक गले न उतरने वाली बातें कही हैं। ऋग्वेद स्वयं ही गीता में उल्लेखित बातों का खंडन करता है। जब कृष्ण खुद वेद के अनुसार असुर और इंद्रद्रोही थे तो वे वर्ण व्यवस्था को बनाने की बात कैसे कर सकते हैं। गीता में ब्राह्मणवाद को मजबूत बनाने वाली जो भी बातें कृष्ण के मुंह से कहलवाई गई हैं वे सत्य से परे हैं। काले, अवर्ण असुर कृष्ण कभी भी वर्ण-व्यवस्था के समर्थक नहीं हो सकते। भारत के मूल निवासियों में अमिट छाप रखने वाले कृष्ण का आभामंडल इतना विस्तृत था कि आर्यों को मजबूरी में कृष्ण को अपने भगवानों में सम्मिलित करना पड़ा। यह कार्य ठीक उसी तरह से किया गया जिस तरह से ब्राह्मणवाद के खात्मा हेतु प्रयत्नशील रहे गौतम बुद्ध को ब्राह्मणों ने गरुड़ पुराण में कृष्ण का अवतार घोषित कर खुद में समाहित करने की चेष्टा की।
जिस तरह से असुर कृष्ण की भारतीय संस्कृति आर्यों ने उदरस्थ कर ली उसी तरह बुद्ध की वैज्ञानिक बातों ने हिन्दू धर्म के अवैज्ञानिक कर्मकांडों के समक्ष दम तोड़ दिया। डॉ. आम्बेडकर के बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद अब भारत में कुछ बौद्ध नज़र आ रहे हैं, वरना इन आर्यों ने बुद्ध को कृष्ण का अवतार और कृष्ण को विष्णु का अवतार घोषित कर कृष्ण एवं बुद्ध को निगल लिया था। कैसी विडंबना है कि विष्णु का अवतार जिस कृष्ण को बताया गया है, वह कृष्ण लगातार वेद से लेकर महाभारत ग्रंथ में इंद्र से लड़ रहा है।
एक सवाल उठेगा कि यदि कृष्ण आर्य या क्षत्रिय नहीं थे तो श्रीमद्भागवद गीता में क्यों लिखा है कि ‘यदुवंश का नाम सुनने मात्र से सारे पाप दूर हो जाते हैं।’ (स्कंध-9. अध्याय. 23, लोक.19) मैं इस संदर्भ में यही कहूंगा कि असुर कृष्ण अति लोकप्रिय थे। वे लोकनायक थे। उनकी लोकप्रियता इस देश के मूल निवासियों में इतनी प्रबल थी कि आर्य उन्हें उनके मन से निकाल पाने में सफल नहीं थे।
बहरहाल, मैंने कृष्ण और यादवों के संदर्भ में कुछ तथ्य विभिन्न स्रोतों से एकत्रित कर तर्कशील पाठकों के समक्ष बहस हेतु रखा है। मैं यह सवाल अब पाठकों के लिए छोड़ रहा हूं कि कृष्ण कौन थे? यादव किस वर्ण के हैं? मैं समझता हूं कि ये प्रश्न अब अनुत्तरित नहीं रह गए हैं।
लेखक चंद्रभूषण सिंह यादव, यादव समाज की प्रमुख पत्रिका ‘यादव शक्ति’ के प्रधान संपादक हैं। यह लेख ‘फारवर्ड प्रेस’ के अगस्त, 2014 की कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित हुआ है।
Comments on “कृष्ण और यादवों का ब्राह्मणीकरण”
क्यों इतना बड़ा वितंडा खड़ा कर रखा है मित्रवर। चार पंक्तियों की कहानी है कि जिसके पास सत्ता और ताकत रही वो श्रद्धापूर्वक देवता की तरह पूजा गया। पुराकाल यानी वैदिक काल में वो इंद्र थे तो बाद के समय में श्रीकृष्ण। आर्य हों या अनार्य गुण पूजे जाते हैं। भगवान शिव, गणपति, कालिका, भैरव भी तो अनार्य देवता हैं। लेकिन इनकी पूजा किन्ही वैदिक देवों से ज्यादा ही होती है। मैने तो अपने ध्यान में इंद्र, मित्र,वरुण, पूषा जैसे वैदिक देवताओं के मंदिर नहीं देखे हैं।
वैसे आपको जिसे पूजना हो पूजिए। सदियों पुरानी व्यवस्था जिसकी अब कहानियां ही मात्र बची हैं उनका आश्रय लेकर नई तकरार न खड़ी कीजिए।
अरे ये जाटव है ।यादव शक्ति पत्रिका जाटवों की ।जिसका पूरा नाम हाडौती यादव जाटव नाम से कोटा में है ।यही यादव शक्ति नाम से प्रकाशित कर रहा है। ना मानो तो search करो hadoti यादव जाटव नाम से
जाटव कौन थे? उनको इतिहास में जगह क्यों नहीं मिली? क्यों उनको अछूत माना गया ? सोचा कभी आपने? क्यों आखिर इस देश में केवल ब्राह्मणों का ही इतिहास है बाकि जातियों का इतिहास जर्जर अवस्था में है। ऋग्वेद अपकोपड़ना चाहिए उसमे यही लिखा है कृष्ण ओर इन्द्र के बारे में जैसा यहां बताया गया है। साथ ही तुलसीदास की रामायण में भी उत्तरकंड में 129 (1) के दोहे में आभीर शब्द का प्रयोग किया है। आप पहले कुछ ग्रन्थ पड़ो,तब कुछ तर्क केसाठ किसी को खारिज करो। ऐसे जाटव है फलाना है ढिकाना है कहने से कुछ नहीं होता। कुछ किताबें जब पदोगे तो आपको पता चलने लगेगा। पहले मुझे भी यही लगता था पर जब पड़ना स्टार्ट किया कड़ी से कड़ी मिलती गई। अभी भी इतिहास के पन्ने नित रोज खंगालता रहता हूं
bhai pls is link ko dhyan se suno jo iss pakhandi le likha he bilkul galat likha he rigved ke baare me
Rigved, Mandla1m Sukt 130 – https://www.youtube.com/watch?v=qw413iF-hZU
Bina tark wali baate rakhte ho tum mujhe murkh aur agyani lagte ho jinko tum anaryo ka devta bta rhe ho inhi anarya devtao ko arya log sabse jyada pujte hai
Bilkul shi
Ek number ke gadhe ho.
Asal Aheer gore aur lambe chaude hi hote hai kaale nhi.bahut se purabiye aur bihari gwale apne aap ko Yadav khne lge hai joki abhi apne aap ko gwala kehte the.
Aaj bhi Tm jaise murkh krishna ki baat to krte hai lekin Balram,Yashoda nand ki baat nhi krte joki Gore the.
Bhai kuch bheemt yadav bankar yadvon ko apne sath jodne ki koshis kar rahe in salon ka koyee astitwa to hai nahi
ये कोई यादव नहीं है कोई और जय जो यादव और अहीर जो एक ही है उन्हें अलग करना चाहता है kitma रुपया मिल रहे तम्हे भीम आर्मी वालो से या jadon जडेजा जो सम्मा मुस्लिम बंजारे थे वही पैसे दे रहें है क्या तम्हे लिखने के लिए ये तो कान खोल कर सुन लो वासुदेव कृष्णा के वंशज अहीर जो यदुवंशी है वही है और सभी यादव काले नहीं है ना और अहीर यादव सुध आर्य होते है तम भीमटो ही काले होते हो पंडितो मे भी काले है राजपूतो मे तो ज्यादातर काले होते है तो क्या वै अनार्य है तम भीमटे लोग राजपूत पंडित यादव जाट gujjar एकता मे फुटडाल रहव हो
सालो ब्रमधो से लड़ो यादव अर्यो को क्यों असुर बना रहे
जय श्री कृष्णा
भिमतो समल जाओ खुद लड़ो हमे न लडॉयो क्यों की मेरी डस्मनी जाती की उच्च नीच की नहीं है
लो जय यादव बाद जय ब्राहमण बाद
हा हम ब्राहमण बादी है। क्यों की हम ब्राहमण से दुस्मनी की जगह दुस्मानी दोस्ती की जगह दोस्ती
जय श्री कृष्णा जय श्री आर्य
Where you had seen yadav are black , if a a ahir yadav is belonging from UP or bihar may be they become black, but exempt them whoever comes from MP , Gujarat, rajasthan, haryana ,punjab western pakistan and kashmir all are fair, and all the community of UP and bihar are black not only yadav,…
Few jealous brahmin had writeen this kind of story in Rig-Veda, it shows there mind how weak these brahmin was at the time of vedic era….
इसको मालूम ही नहीं है कि द्रुम कुल्य कजाकिस्तान में है जिसे कीलीजकुम नाम से जानते हैं इसका प्रमाण में इसी के कमेंट से देना चाहता हूं जिसमें लिखा है कि समुद्र राम से कहते है कि हे प्रभु उत्तर में डकैत आभीर हमारे जल को अपवित्र करते हैं इसका मतलब है कि वहां पर समुद्र हैं ।
इस तरह कीलीजकुम में समुद्र है जिसका पानी दिनोंदिन सूखते जा रहा है और वहां रेगिस्तान भी है जिसमें परमाणु अस्त्र के अवशेष मिलते हैं। तथा रामेश्वरम से उत्तर लगभग 4000किमी की दूरी पर है जबकि मेवाड़ के पास न तो कोई समुद्र है ना ही कोई परमाणु अवशेष यह एक झूठ ही षड्यंत्रकारी कहानी लिखकर हिंदुओं को तोड़ने का असफल प्रयास है।
इसी के बात से मैं कहना चाहता हूं कि अगर आभीर किलिजकुम के हैं तो यह खुद ही विदेशी हैं मूलनिवासी नहीं। और आप ही का मतलब डाकू से रहा है जो दस्यु रहे हैं और कजाकिस्तान के इतिहास में वहां दस्यु रहा करते थे।
tum kahna kya chahate ho yadav kya the jab tu log yadav se jit nai pate ho tab isa karna ya kahan chalu karte ho tum sab murkha ho samjhe
Abe tum yadav ho he nhi yadav to saare mera gye the tum to bheelon or pta nhi kiss kiss ki paidayes ho
Tu to hai parshuram li aulaad
Madharjaat pehle padhke aa bhosaree wale puran aur geeta shrap sirf mila thha kul ka nash hone ka poore yadav vans ka nahi saree sanatan sanskriti hum ahiron ki den hai bhosaree wale soch samajh ke bola kar
Lund den h aheero ki
Krishna ji Kshtriya the or aaj unke vanshajo Ko jadav ya Jadon Naam se Jana jata h
Abheer aheero vastav me lutere the bus q ki unhone Arjun k sath aye Krishna k putra Ko bhi loota tha
maiya choaD LE TU APMNE JAAKE BHOSDIWSALE..AHIR AUR WALE SAVI YADAV KI SUBCASTE HAI.. PADHA KAR NAI TO MIYA SE BEHEN KE CHUT CHUDWAYA KAR.
Bhai kyo kharab bolta hain, jadon caste waale log pahele , gadariya tha, baad me 9vi sadi me ye jadon bane hain , …
tum.to.sale videshi ho bo bhi itihas chor jabarjasti ghuse ho bhartiye itihas me sale iran ke mulle ho
yaaaadavo se jalne.lage ho. jab aayo ki baat hogi to ramayna mahabharta bhi nahi ho sakti
Gaandu nakli….tu pandit kaha se h be….hota to ye a bolta…brahmin h tu wo bhi raavan ki tarah….saalo anpd….ab kissi ko bewkuf nai bna skte….tumahri kya aukaad h sabko pta chal gya h
BOL TO AISA RAHA JAISE TERE MAIYA NE PARSURAM KA LAND CHUS PAIDA KIYA TUJHE..
HISTORY BADHIYAN SE PADH BEHEN KE LODE
Tere jaise bheemte neech yhi kr skte h….juth faila gaandu logo….tumahri aukaad nai krishan ji ya yaduvansh ke baare me bolne ki….jalo saalo neech logo
tum sab ye batao ki yadav ka gotra atri rishi hai to yadav asur kaise hua iska matalb yah hai ki atri rishi asur the jinke bete som yani ki chandram arthat devata chandradev asur the jo ki kshatriya the jinse chandravansa chala yaha sabhi asur the
Ye kisi bhosadi bale pandit ne hi likha hoga madarchod ne. Ye sab galat h ye charo bed padoge tab tum logo ko sahi jankari milegi.
या जिसने भी लिखा है वह पूर्णता गलत मैंने ऋग्वेद पड़ा है और उसमें इसका कहीं भी जिक्र नहीं है उसमें केवल भगवान श्री कृष्ण को यादव कबीले का सरदार बताया गया और गाय का रक्षक बताया गया है भगवान श्री कृष्ण ने गीता में खुद को राम भी बताया तो राम और कृष्ण जब एक ही हैं तो यह असुर कहां से हुई या केवल बामसेफ जो खुद को मूलनिवासी सिद्ध कर रहे हैं और ब्राह्मणों को बाहर से आया हुआ यह उनकी चाल है ना हो तो आप भी ऋग्वेद की पुस्तक लेखक पढ़ सकते हैं और यादव की उत्पत्ति चंद्रमा से हुई है और इसमें चंद्रमा के वंशज थे यदु जिनसे यादव हुए सोम का एक नाम चंद्रमा की है
Bilkul sahmat
जय श्री कृष्ण । जय राधे । अगर ऋगवेद अपने शुद्ध रूप मे है तो कृष्ण नाम का असुर कोई और ही है । वेद बताते हैं कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु ने चारो वेद जिनमें ऋगवेद भी शामिल है भगवान ब्रहमा को मानवता के कल्याण के लिए दिए । अर्थात जब द्वापर युग में प्रभु हरि ने अवतार लिया उस समय से बहुत पहले ही वेद मौजुद थे ।
वेद लिखे किसने? आज जो तुम्हारे ओर हमारे सामने है वो सब ब्राह्मणों के लिखे हुए हैं जिसमें उन्होंने अपने हिसाब से नायक गड़े। हर ग्रंथ में ब्राह्मणों का ही महिमा मंडल क्यों है? सोचिए
Mujhe nahi lagta hai ki hamare mul ved apne sahi roop me maujud h kyunki ved to tb bane the jab ram aur Krishna nhi the. Aur yadi koi granth aisi galat jankari deta h to WO khud galat h. Tulsi manas aur balmiki Ramayana me in NATO Ka jikra Kaise ho sakta ye sab janbujh kr brhanti falai ja rhi h kyu ki ved k anusaar hi brhma ji k 9 putro me se hi yaduvans raghuvans aur Brahman ki utpatti hui h. AGR aap adhure gyan ko lekr change to hamesa piche rhenge.
Jai Krishna jai attri jai shiv
हास्यापद और बेहद घटिया बकवास। वेद का अमुवाद कहाँ से लाये? वेदों का सतही अनुवाद कर आस्था से खेलते हो । सच्चिदानंद श्रीकृष्ण को समझने के लिए दिव्य ज्ञान चाहिए। तुम्हारे एक एक बात का दस दस जबाब दे सकता हूँ। लेकिन नही पहले तुम अपने लेखन के पीछे के असली एजेंडे को जाहिर करो। जो समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामि है जो स्वयं में ब्रम्ह है उसे तुमने वर्ण और बाहरी भीतरी में बाँट दिया। तुम्हारे लेखन से जो दिग्भ्रमित होगा उसकी अधोगति तय है। बिहारी जी तुम्हे सुबुद्धि दें।
जय राधामाधव
विष्णु पुराण में भगवांन विष्णू के मत्स्य अवतार का वर्णन है जिसमे बताया गया है की भगवन बिष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर वेदों की रक्षा की थे और उन्हे ब्रह्मा जी को सपरत किया था तो फिर आपने कौनसा वैद पढ़ा जिसमे कृष्णा को दानव अर्थात असुर बताया गया है निश्चित आप यादव विरोधी है ।।।। आप यादव तो क्या हिन्दू भि नहीं हे।।।
ये सभी बाते ब्राह्मणों की बनाई हुई ही यादवो का वंस अत्रि ऋषि से उत्पन हुआ और शुक्राचार्य जो की ब्राह्मण थे की पुत्री देवयानी और राजा ययाति के प्रथम पुत्र यदु हुये और उनकी संतान उनके नाम से यादव वंश क़ी उत्पति हुई अगर व्राह्मण की उत्पति व्राह्मा से हुई ही तो अत्रि ऋषि भी व्रह्म के पुत्र है और जैन धरम मैं जो जैन गुरु है वो भी तो भगवन कृष्ण कई चचेरे भाई थे और अहीर शब्द का अर्थ होता हैं जीतनेवाला मतलब अहीर संसकिरत शब्द है जिसका सिन्धी-विच्हद करने पर अर्थ निकलता हैका अर्थ होता है सर्प को जीतनेवाला इस कारन से यदु महाराजा का नाम अहीर हुआ क्योकि उन्होंने एक विशाल सर्प को मारा था ।ये सब गलत लिख मत पोस्ट करियै ।।।।।।।
आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत यहां बात पूर्णता गलत है मैं भी ब्राह्मण नहीं हूं लेकिन मैं सुख लक मानता हूं कि कि मैंने भी ऋग्वेद पड़ा है या किसी ने गलत बताएं
is poore bahas se yeh baat toh aaj bhi pratit hoti hai ki yeh joh aarya bane huye hai voh aaj bhi krishana vansiyo ke vikas se aaj bhi dushman bane huye hai aur chhal kar rahe hai aur bura chhah rahre hai.
यदुवंस की उत्पति तो भगबान राम के समय मैं हो गयी थी रावण को सहस्त्रबाहु अर्जुन नै अपने अस्तबल मैं बांध कर रखा था और उसी से परुश्रम जी का युद्ध हुआ था फिर भगवान् कृष्ण अनार्य कैसे हो गये पहले सभी बैदिक कार्य ऋषि मुनि किया करते थे यहाँ तक की हवन पूजा कही भी ब्रामण कोई भी वैदिक कार्य नहीं करते थे यहाँ तक कथा भगवत भी ये तो महाभारत युद्ध कई बाद जब सरस्वती नदी बिलुप्त हो गयी तो सारे ऋषि और मुनि हिमालय की कंदराओं मैं चले गये और तब से कथा भगवत और वैदिक कार्य ये ब्राह्मण करने लगे ऋग्वेद मैं जिन 5 लोगो का बर्डन है वह राजा ययाति कई 5 पुत्रो का बर्डन है और राजा ययाति कै बड़े भाई ही जैन धर्म के तीर्थकर हुऐ है ।।।।।
भाई काले वर्ण का तो भगवान राम को भी बताया गया है ग्रन्थों में। उनके क्षत्रित्व पर तो प्रश नहीं उठते। और यह किस ग्रंथ में लिखा है कि सभी यादव काले होते हैं। यादवों को छोटा बता के बड़े नहीं बन सकते। यादवों की तरह से संघर्ष करो तब उन्नति होगी।
Tum angrej ki aulaad ho .Agar krishna ji kaale the.to shree radhika ji gori kyo thin .gwal bhi gore the vashudev devki rohini nandbaba yasoda maiya sab gore .vo bhi to Yadav the .brother asur kala kale paapi ye sab kya h.tum ek chhoti neechi soch k shikaar ho.are Yadavo Ka poora itihaas pad lo.phir apna bhi apni aukaat saaf dikeghi tumhe.ok
GitaMeinMatr18AdhyayHai yah VishnuPuranKaHai
Shanker bhagvan bhi kale hai. Maryada purshottam Ram bhi kale hi the to KRISHNA ke kale hone se kya fark pdta hai . Fark Yadvo badi huie lokpriyta se padta hai.
shankar bhagwan gore hain wo kaala roop unke bhasm dharan karne se dikhta hai.
Thakur ji Thakur ji thakurji Ab batao Tum Kaha se aye
ye saala khud hi jo likha use pura hyaan nai h chutiya kahi ka …….apne baap se puchha hota toh jyada sahi batata ……gannd fat ti h saalo ki
saala ye jo likha hoga khud hi achhot hoga ya naam badalkar post kr raha h
https://www.facebook.com/Yadavhistory/?fref=ts
http://www.yadavhistory.com
Krishna means black color with blue metallic shine.now with that it is applicable to any person community race caste.it could not possible that name krishna is used for yadavanshi exclusivly.yamuna was always there whether ram or shyam reign.vedic krishna is community yadav krishna is name of a living person with aryan kshatriya genealogy who protest indra all alone .now it is unclear who this indra is…any tyrant foreign monarch or local warlord or vedic god.indra means king not necessary the same vrdicvedic guy.yaduvansh a pure aryan genepool.yaduvansi a pure aryan decent.yadav a pure synonym of aryan kshatriya.Aheers the pure inheritors of aryan yaduvansi lineage and proud legacy of valor and sacrifice.those who abuse yadav/Aheers intently are deprived of such identity.
;);):(
अरे मुर्ख कभी भागवत कथा सुने हो सुने होते तो समझ में आ जाता
राम सांवले, कृष्ण सांवले, विष्नु सांवले तुम्हे क्या पता सांवले हिंदुस्तान की पहचान है तुम्हारे मानसिकता के लोग तो विदेशों में भरे पड़े हैं
granth tum jaise logon ne hi gande kiye hain Writer apne dimag ka upchar kara kisi videshi pagalkhane me
अबे क्या चुटिया है तू स्री कृष्ण क्षत्रिये थे ओर अभेर नन्द वंशी , ग्वाल वंशी थे ।। दोनों अलग है ।अहीर विदेश की मलेछ जाती है
बे फ़र्ज़ी यादौ तू क्या समझता है तेरे इस तरह की पोस्ट डालने से तू श्री कृष्ण जी को अनार्य या राक्षस घोसित करडेगा ।।
अबे अहीर, चमरिया ,कमरिया ,बर्दहिये,गवालवंशी साले फ़र्ज़ी पोस्ट डाली तो काट दूंगा ।।
अबे जादौन तूम तो खुद गड़ेरियों के वंश से आते हो , तू क्या बोलेगा
आपने बहुत ही व्यापक अध्ययन किया है आपके प्रयास सराहनीय है
Ye hinduo ko todne ka chal chal rha h bhai murkh ho kya ram v shyamla tha uska varnan kyo nhi kiya kuchh smjho
असल में ये साहब न तो यादव हैं और न ही यदुवंशी। इनका न तो सनातन से कुछ लेना देना है और न ही बौद्ध से… ये कुछ चर्च पोषित वामपंथ, इसाइयत और अम्बेदकराइट विचारधारा के हाइब्रिड संस्करण हैं, जिनका काम ही सनातन ग्रंथो और मान्यताओं को छिन्न भिन्न करना है। ऐसे लोगों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। क्योंकि इनकी बातें इनके हकीकत से कोसों दूर होती है। यूं तो इनके लिए राम,कृष्ण या सीता का कोई अस्तित्व हीं नहीं होता, लेकिन अपनी सुविधा के अनुसार ये अक्सर महिषासुर, एकलव्य आदि को रिश्तेदार बताते रहते हैं। तो बता लेने दो। फर्क क्या पड़ता है?
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True brother
Bhai ye madarchod koi chamar ka bachcha hai
Converted yadav h ye sb,isliye kisi yadav ki photo tk nhi lgaye h .sb kaun kaun h an log dekh lo inme kaun yadav h btaye
नाम के आगे यादव लिखने से कोई यादव नहीं बन जाता ।
इस बात का मैं पुरजोर खंडन करता हूँ कि ये पत्रिका का यादवों से कोई लेना देना है ये समाज में फुट डालने के लिए कुछ निठल्ले लोगों द्वारा चलाई जा रही है और इसमें कोई भी यादव कार्यरत नहीं है।
Bhai asur eak caste he wo aaj bhi bhart or nepal border par he wo apne aap ko asur kha te he or mahishasur ko apna samaj kar mante he. Ye galt baat mat fela parman cha hi ye to muj ko pata.me panna dungs
Dear sir
Thanks for right information
Brahmins ne pura country ko barbaad kar diya
The person who had posted this is the biggest enemy of Yadavs. He is making sure that Yadavs should fight with Brahmans, Rajputs & other castes so that Yadavs can become weak & then they’ll conquer us. Anti-Yadav comments from other caste’s ID is his own propaganda. Listen carefully, Brahmans, Rajputs & all Hindus are our brothers. If you wanna fight then come on face to face. We Yadavs are waiting for you
कृष्ण सावले थे और राधा गोरी थी !तो लिखते समय थोड़ा शोध कर लिया करो चिरकुट
Tum gawar ki paidayshi ho … yahi satya h
Kyu pagal banava ha loga ne ya galat kabar deke saale jab kise cheej ka bera na ho na to uspe jyada laplap na karya kar saale tu yha ka koni lagta Maine
Me Yadav to nahi hu par aap kisi ke bahkave me mat pado tab bhagwan shri krishn ne khud kaha h me hi pure sansar ka palan karta hu me hi nar hu me hi narayan hu or bhagwan shri krishn han sab ke purvaj h
असुर जाती अभी भी है विकिपीडिया पर देख ओर में उन से मिल भी चुका। वो महिसासुर को अपना देवता मानते है और पूजा करते है। वो अपने को असुर कहते है और अपनी जाति भी असुर बताते है। गलत बात मत करो।
ऋग्वेद कहता है कि ‘निचुड़े हुए, गतिशील, तेज चलने वाले व दीप्तिशाली सोम काले चमड़े वाले लोगों को मारते हुए घूमते हैं, तुम उनकी स्तुति करो।’ (मंडल 1 सूक्त 43)
abe yar pahle padh to le jakr ऋग्वेद ki (मंडल 1 सूक्त 43) likha kya or matlab kya h
यादवों’ की उतपत्ति:
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के मस्तिष्क से ‘अत्री’ ऋषि उत्पन्न हुए थे। ‘अत्री’ ने ‘भद्रा’ से विवाह किया, उन दोनों ने ‘सोम’ को जन्म दिया था। यहीं से सोमवंश/चन्द्रवंश की शुरुवात हुयी। युवावस्था में ‘सोम’ की तरफ ऋषि ‘बृहस्पति’ की पत्नी ‘तारा’ आकर्षित हुयी। दोनों ने मिलकर ऋषि बृहस्पति की अनुपस्थिति में ‘बुध’ को जन्म दिया। भागवत के अनुसार सोमपुत्र ऋषि ‘बुध’ भारत खंड आये। धरती पर सूर्यवंशी राजा मनु की पुत्री ‘इला’ को ‘बुध’ से प्रेम हो गया। दोनों के मिलन से ‘पुरुरव’ नामक पुत्र का जन्म हुआ। बाद में ‘पुरुरव’ चक्रवर्ती सम्राट हुए।
राजा पुरुरव और स्वर्गलोक की अप्सरा ‘उर्वशी’ ने मिलकर ‘आयु’ को जन्म दिया. राजा आयु चौथे चंद्रवंशी सम्राट थे..राजा आयु ने राजा ‘सर्वभानु’ की पुत्री ‘प्रभा’ से विवाह किया। इस विवाह से पांच पुत्र हुए, जिनके नाम है -नहुष, क्षत्रवर्ध, रंभ, रजी और अदेना।
बाद में युवराज ‘नहुष’ सिंहासन के उत्तराधिकारी बने। राजा नहुष ने ‘व्रजा’ से विवाह किया। रानी ‘व्रजा’ से छह पुत्रों(यति, ययाति, समति, अयति, वियति और कीर्ति) और एक पुत्री ‘रूचि’ को जन्म दिया। बाद में राजकुमारी रूचि का विवाह ‘च्यवन’ ऋषि और ‘सुकन्या’ के पुत्र ‘अपनवन’ से हुआ।
राजा नहुष के ज्येष्ठ पुत्र ‘यति’ धार्मिक प्रवित्ति के थे, उनकी राज-पाठ में तनिक भी रूचि नहीं थी। उनके स्थान पर ‘ययाति’ राजा हुए। महाराज ‘ययाति’ ने दो विवाह किये। उनकी पहली पत्नी असुरों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री ‘देवयानी’ थी। दूसरी पत्नी विवाह में देवयानी के साथ आयी उनकी सहेली ‘शर्मिस्था’ थी। ‘देवयानी’ ने ‘यदु’ और ‘तुर्वसु’ को जन्म दिया तथा ‘शर्मिस्था’ ने ‘द्रुहू’ ‘अनु’ और ‘पुरु’ को जन्म दिया।
ऋग वेद में इन पांचो (यदु, तुर्वसु, द्रुहू, अनु और पुरु) को ही ‘पांचजन्य’ कहा गया है। ‘यदु’ का उल्लेख ऋग वेद में है इसीलिए ‘यदुवंशियों’ को ‘वैदिक क्षत्रिय’ भी कहा जाता है।
बाद में राजा ययाति ने अपने सामराज्य को अपने पांचो पुत्रों में विभक्त किया और सारे भौतिक सुखों को त्याग कर खुद वनवास को चले गये।
ऋषि ‘बुध’ से राजा ‘ययाति’ तक सभी चंद्रवंशी/सोमवंशी हुए। ‘यदु’ को छोड़कर सभी ने सोमवंशी वंश को आगे बढाया। यदु के चार पुत्र हुए, उनके नाम है- सहश्त्रजीत, क्रोष्ट, नल और रिपु।
राजा ‘यदु’ ने ‘यदुवंश’ की स्थापना की और अपने पुत्रो को ‘यदुवंश’ को आगे बढ़ाने का आदेश दिया।
कालांतर में यदुवंश में ही भगवान् ‘श्रीकृष्ण’ का जन्म हुआ। ‘श्रीकृष्ण’ को ‘यादव’ भी कहा गया, जिसका उल्लेख ‘श्रीमद भागवत गीता में भी है।
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।
अजानता महिमानं तवेदं मया प्रमादात्प्रणयेन वापि॥११- ४१॥
(गीता-अध्याय 11, श्लोक 41)
गीता के उपरोक्त श्लोक में अर्जुन श्रीकृष्ण को ‘यादव’ नाम से संबोधित करते है।
‘मनु’ द्वारा कृत ‘वर्ण-व्यवस्था’ में ‘यदुवंशी’ अथवा ‘यादव’ को ‘क्षत्रिय’ वर्ण माना गया है। एवं ‘ऋग वेद’ के अनुसार ‘यादव’ ‘वैदिक क्षत्रिय’ है।
चूँकि ‘सोम’ ‘अत्री’ ऋषि के पुत्र थे इसलिए ‘यादवों’ का प्रधान गोत्र ‘अत्री’ गोत्र है। कालांतर में कई उपगोत्रों की भी उतपत्ति हुयी। तथा क्षेत्रिय आधार पर भी कुछ गोत्रों का गठन हुआ। परन्तु यह तथ्य स्पष्ट है कि ‘यादवों’ का प्रधान गोत्र ‘अत्री’ गोत्र ही है।
(नोट: कुछ राजपूत जातियाँ खुद को यादव वंश से जोड़ने का प्रयास करती है, परन्तु उनका वैदिक क्षत्रियो से कोई सम्बन्ध नहीं है….राजपूत विदेशी है जो हुन, कुषाण और कुछ तो फारसी मूल के है..जिनका पांचवी शताब्दी के पहले का कोई इतिहास नहीं है.)
Ye pura articles kisi haram ki aulad, gadhe, murkh ne likha hai. Ye 84 lakh se ek kam yoniyon me ghumta rahega arthat kabhi dubara manav yoni me nahi aayega jisse iska uddhar asambhav hai
Yadav kshatriye h yadav ko Neecha mat dikhao yadav vansh m janm lene ke liy tarste h log
Yadav kshatriye h yadav ko Neecha mat dikhao yadav vansh m janm lene ke liy tarste h log
अबे यह जाटव है राजस्थान से वहां यह जाटव अब यादव लिखते हैं। जिसका प्रमाण नेटपर है
जिसकी समिति कोटा राजस्तान में ।इस पत्रिका का नाम पहले हाडौती यादव(जाटव) जागृति मंच था ।यह अब यादव शक्ति नाम से पत्रिका प्रकाशित करती है। इसकी स्क्रीन शॉट है मेरे पास ।व्हाट्सएप्प no दो भेज दूंगा। आप इस नाम से सर्च करके देख सकते है ।
Bhai jisne bhi ye patrika nikali hai uske khilaf fIR darj karwana padega
अभी search करो सब पता चल जाएगा।दूध का दूध पानी का पानी। यह चमार है लेकिन यह यादव लिखता है जैसे यादव सिंह जो जाटव है उसका पुत्र अपना सरनेम यादव लिखता है। अभी search करो हाडौती यादव (जाटव) जागृति मंच नाम से।
अरे इन फ़र्ज़ी के आज के पंडित है अपने आप को ब्राह्मण बताते है ये शुद्र है ये सेल खुद अनार्य है बाहरी है और हम लोगो को लड़ाते है तोड़ाते है इन दूस्ट अनार्य सूद्र पंडितो से बचकर रहो जो ब्राह्मण होने का ढोंग करते है ।भगवान श्री कृष्णा पर संदेह जो स्वम परम ब्रम्ह महाविष्णु के संपूर्ण अवतार हस। और ये जितने पंडित लेखक हुए है ये चूतिये केवल यादवो के पीछे पड़े रहते है अत जाता कुछ नहीं केवल गलत लिखता है सब। ये जानते है कि ये खुद आर्य नहीं है और अगर ये यादवो को तोड़ दिए आर्यो से तो ये पूरा आर्यो पर अपना अधिकार जमा लेंगे लेकिन जब तक यादव है ऐसा सम्भव् नहीं है इसी लिए तोड़ाते है यादव को ये नीच पंडित।
कृष्णा हमारे लिए पूजनीय हैं और साथ ही इनकी पूजा सभी हिन्दू करते हैं साथ ही श्री कृष्णा रचित गीता ही हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी धर्मग्रंथ है इस प्रकार के दुष्प्रचार से कुछ नही होने वाला है । इसाई मिशनरियों के पैसों का सही इस्तेमाल कर रहे हो पर इस से न धर्म टूटेगा न देश।
जय श्री कृष्णा
Yadav bahubli the aur aaj bhi hai jise jankari na ho krpya Rigved ka adhayan kre
Yadav the smjh lo
agr Yadav jat pr ach ayi to khun bhega pani ki Trh
BHAGWAN H Kanhaiya Ji Smjh Lo beta
ग्रीक शब्द अश्शुर अर्थात असीरियन(असुर) लोगों के लिए प्रयुक्त होता था. ऋग(वेद संहिता) में राम, कृष्ण, विष्णु, वरुण, इन्द्र और सब देवताओं को अश्शुर अर्थात असीरियन(असुर) कहा है इसलिए राम, कृष्ण, विष्णु, वरुण, इन्द्र और सब देवता है ग्रीक(अश्शुर अर्थात असीरियन). ऋग(वेद संहिता) में आर्य के वंशजों ने खुद को अश्शुर अर्थात असीरियन कहा है इसलिए आर्य के वंशजों है ग्रीक(अश्शुर अर्थात असीरियन). सनातन(शाश्वत) धर्म नहीं है हिन्दू सम्प्रदाय. आर्य(वीर, योद्धा) सम्प्रदाय नहीं है हिन्दू सम्प्रदाय. आर्य सम्प्रदाय है अश्शुर अर्थात असीरियन(असुर) धर्म का सम्प्रदाय. यहूदियों के 12 कबीले था. एक कबीले का नाम था अश्शुर अर्थात असीरियन(असुर).
अबे चल साले आया बाद ज्ञान देने वाला
Gadhe Brahmano ka nhi Abheero ka niwas sthan Iran tha Aur Abheer log bahar se aaye the na ki brahman.
Aur Abheer ka Kabila tha caste nhi thi…..
Ye log lambe chaude gore chitte hote the…. local Arya kaale the aur gwale the…smjha
Abheer baad me bharat me aaye the aur local jaatio me mil gye jo ki kaale the smjha.
Krishna vrishni kabile se the.
Gop ek caste thi.
Abheer ek dusra Kabila tha.
Aaj bhi Abheero ke vanshaj bhut si jaatio me paaye jaate hai…..Brahman sonar jat chamar koli etc.
Shri Krishna ko asur btane bale kayr murkh mujse aa kr mil pta note kr Delhi jagatpur exitantion 110084 dum h to aa madev ki Ksm tuje chhti ka dudh yaad n dila diya to m Krishna ka vanshj nhi, or yadav koi jati nhi h Yadav ek vichar dhara h jo Smaj k klyan tatha tum jese pakhndiyo ko ant krna, (Yadav viro en pakhndiyo k chkr m mt aao virta to hmare khoon ki ek ek boond m virajmaan h or jo pankhdi or kayr hote h wo sirf milavti tathy prstut krte rehte h agr je yodha hote to humra samna krte)
Jai dada keshav,jai Krishna
han yeh sahi bat hai jai ho yAdavo ki main bhi yadav hun
भगवन विष्णू स्वयं काले थे राम काले थे कृश्ना भी काले थे। एक यदुवंशी का सम्पूर्ण परिचय….
जाति ……….. यादव / अहीर
वंश ………. चंद्रवंशी छत्रिय
कुल ………. यदुकुल / यदुवंशी
इष्टदेव ………. श्रीकृष्ण
ऋषिगोत्र……. अत्रेय /अत्रि…आदि 150 के लगभग
ध्वज ……… पीताम्बरी
रंग ……… केसरिया
वृक्ष ……… कदम्ब और पीपल
हुंकार ……… जय यादव जय माधव
रणघोष ……… रणबंका यदुवीर
निशान ……… सुदर्शन चक्र
लक्ष्य ……… विजय
यदुवंश के गौरवमयी इतिहास से लोगों को परिचित कराने का यह छोटा सा प्रयास भर है…. हम यदुवंशी हैं.. राजा यदु के वंशज जिनकी 49सवीं पीढ़ी में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था…हम उन्ही श्रीकृष्ण वंशज हैं…हमारे बच्चे बच्चे को अपने गौरवशाली इतिहास से वाकिफ होना ही चाहिए… बस यह प्रयास उसी दिशा में है… हम यदुवंशी चन्द्रवंश शाखा के यदुवंशी क्षत्रिय हैं… आरक्षण हमे आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़ जाने के कारण मिला है.. न कि शूद्र होने के कारण…आरक्षण से वर्ण नहीं बदल जाता…आरक्षण सहायता के लिए उठाया गया संवैधानिक कदम है न कि वर्ण व्यवस्था के कारण…ये सुविधा वैश्यों और ब्राह्मणों की भी कुछ जातियों को भी मिली हुई है
..किन्तु इससे उनका भी वर्ण नहीं बदल जाता है.. वर्ण व्यवस्था में हम सवर्ण हैं और क्षत्रिय हैं… हम यदुवंशी ठाकुर हैं… यादव/अहीर/यदुवंशी/राव/चौधरी/राय/सिंह आदि हमारे प्रमुख टाइटल हैं….आपकी जानकारी के लिए मैं भारत के विभिन्न प्रदेशों में यदुवंशियों के प्रचलित उपनामों का ब्यौरा प्रदेशवार दे रहा हूं…..
अब मैं थोड़ा ऐतिहासिक तथ्यों पर भी प्रकाश डालूंगा.. बहुत बार दूसरे लोग चिढ़ की वजह से या फिर हमें नीचा दिखाने की गरज से कह देते हैं कि तुम तो अहीर हो यादव नही हो…भगवान कृष्ण तो यादव थे…क्षत्रिय थे तुम तो अहीर हो …नन्द के वंशज जिन्होंने कृष्ण को पाला था..तो आपको पता होना चाहिए कि कृष्ण के पिता वासुदेव और बाबा नन्द आपस मे सगे चचेरे भाई थी…और दोनों ही चंद्रवंशी क्षत्रिय थे….तो अब ऐसी ही कुछ भ्रांतियों को मै बिंदुवार स्पष्ठ करूँगा….
१..बाबा वासुदेव और बाबा नन्द का रिश्ता..
……श्रीकृष्ण के पिता का नाम राजा ‘वासुदेव’ और माता का नाम ‘देवकी’ था। जन्म के पश्चात् उनका पालन-पोषण ‘नन्द बाबा’ और ‘यशोदा’ माता के द्वारा हुआ।
भागवत के अनुसार वासुदेव यादव के पिता का नाम ‘राजा सूरसेन’ था तथा बाबा नन्द यादव के पिता का नाम राजा ‘पार्जन्य’ था तथा इनके बाबा नन्द सहित 9 पुत्र थे – उपानंद, अभिनंद, नन्द, सुनंद, कर्मानंद, धर्मानंद, धरानंद, ध्रुवनंद और वल्लभ। ‘नन्द बाबा’ ‘पार्जन्य’ के तीसरे पुत्र थे। सूरसेन और पार्जन्य दोनों सगे भाई थे। सूरसेन जी और पार्जन्य जी के पिताजी का नाम था महाराज देवमीढ।इस प्रकार बाबा वासुदेव और बाबा नन्द एक ही दादा की संतान थे तथा दोनों ही यदुवंश की शाखा ‘वृष्णि’ कुल से थे। आगे चल बाबा नन्द के कुछ वंशज जो वृष्णि कुल के ही यदुवंशी थे उन्होंने बाबा नन्द को पूज्य मान नन्दवंशी अहीर कहलाए तथा बाकी के बचे हुए वसुदेव और नन्द जी के वंशज कालांतर में भी ‘वृष्णि’ कुले यदुवंशी अहीर कहलाए…
‘भागवत पुराण’ में बाबा नन्द को गोकुल गाँव का चौधरी लिखा है तथा पूरा नाम “चौधरी नन्द यादव” लिखा है।
भागवत के अनुसार ‘नन्द बाबा’ के पास नौ लाख गायें थी। उनकी बड़ी ख्याति थी। और वे पूरे गोकुल और नंदगाँव के मुखिया थे…कुछ लोग अज्ञानतावश कुतर्क देते है….परन्तु सच यही है की इस तरह से ‘श्रीकृष्ण’ का जन्म और पालन-पोषण ‘यदुवंशी-क्षत्रिय’ परिवार में ही हुआ था…..
2…अहीर/अभीर शब्द का अर्थ….
‘अहीर’ एक ‘प्राकृत’ शब्द है जो संस्कृत के ‘अभीर’ से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘निडर’.
अपनी निडरता और क्षत्रिय वंश के कारण की यदुवंशीयों का नाम ‘अहीर’ पड़ा।
3….कंस कौन था….ठाकुर या यादव…?
कुछ लोग यह भी कुतर्क करते हैं कि कंस कौन था…कंस अंधक कुल का क्षत्रिय यदुवंशी था..भागवत के अनुसार यादवों के कुल 106 कुल हुआ करते थे जैसे …..अंधक, अहीर, भोज, स्तवत्ता, गौर आदि 106 कुलों को मिलाकर यादव गणराज्य कहा जाता था…ठाकुर कोई जाति नहीं अपितु एक पदवी या उपाधि है जो मुख्यत: रजवाड़ों को दिया जाता है फिर चाहे वो यदुवंशी कुल का रजवाड़ा हो या चौहान या कोई और कुल का..कालांतर में कई प्रसिद्ध यदुवंशी रजवाड़े हुए जैसे महाक्षत्रप राजा ईश्वरसेन अहीर, महाराजा माधुरीपुत्र अहीर, महाराजा रूद्रमूर्ति अहीर जैसे कई यदुवंशी शासक 6th AD के ठाकुर भी कहलाए….. ……’ठाकुर’ शब्द की पदवी सबसे पहले द्वारिकाधीश भगवान कृष्ण को दी गई थी जब उन्होंने सभी यादव कुलों को ब्रज से लेजाकर द्वारिका स्थापित किया था तब सभी यादवों ने मिलकर द्वारिकाधीश को इस पदवी से विभूषित किया….चौधरी, ठाकुर, राव आदि ये सब शाही पदवियां है जिसका किसी जाति विशेष से कुछ लेना देना नहीं है….इस तरह से हम स्वयं यदुवंशी ठाकुर हैं… और मध्यप्रदेश के घोषी यादव तो स्पस्ट रूप से ठाकुर पदवी का प्रयोग करते भी हैं…
4….यदुवंशी(यादव/अहीर)क्षत्रिय की उत्पत्ति…(Origin of Yadavas)…
यहां पुराणों के अनुसार यदुवंशियों की पूरी वंशावली प्रस्तुत कर रहा हूं… इसे ध्यान से पढ़िए..यदुवंश के इस इतिहास को आप यू टयूब पर भी देख सकते हैं…
1…..ब्रम्हा
2…..ब्रम्हा के पुत्र अत्रि ऋषि
3….अत्रि ऋषि के पुत्र चन्द्रमा….इन्हीं से चन्द्र वंश का प्रारंभ हुआ तथा वंशज चंन्द्रवंशी क्षत्रिय कहलाए…
4….चन्द्रमा के पुत्र बुध
5….बुद्ध के पुत्र पुरुरवा
6….पुरुरवा के पुत्र आयु
7…..आयु के पुत्र नाहुष
8…..नहुष के पुत्र ययाति
9……महाराज ययाति की दो पत्नियां थीं…. ययाति का पहला विवाह गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से हुआ एवं इनसे दो पुत्र हुए…
1…यदु
2…तुर्वसु
• ….शर्मिष्ठा महाराज अयाति की दुसरी पत्नी थी तथा इनसे तीन पुत्र हुए इस प्रकार से महाराज ययाति के पांच पुत्र थे..
• 3…..अनू
• 4….द्रुहू
• 5…..पुरु
यहीं से चंद्रवंशी क्षत्रिय वंश मे दो महत्वपूर्ण वंश आरम्भ हुए….
यदु से यदुवंशी(यादव/अहीर)और पुरु से पुरुवंशी नामक वंश प्रारंभ हुए….
…..राजा यदु के चार पुत्र थे….सहस्रजित्,क्रोष्टा,नल और रिपु…यादव वंश मे पूर्व मे १०१ कुल थे,जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं…..
यदुवंशी:
(1)वृष्णि वंशी यादव…..महाराज वृष्णि के वंशज हैं।इस वंश मे महाराज सुरशेन,वासुदेव(भगवान श्री कृष्ण के पिता), महाराज पारजन्य( बाबा नन्द के पिता और महाराज शूरसेन के सगे भाई), बाबा नन्द (बाबा नन्द के वंशज इन्हें अराध्य मान नंदवंशी अहीर भी कहलाए) , श्रीकृष्ण,बलराम,देवी सुभद्रा, इत्यादि का जन्म हुआ है।श्रीकृष्ण का जन्म इस वंश मे होने के कारण इन्हें कृष्णौत अहीर भी कहते हैं।ये “सुरशेन प्रदेश”के शासक थे। इस वंश के राजा देवागिरी का सेउना राजवंश इसी कुल से थे और कृष्णौत अहीरों के वंशज माने जाते है।
(2)अंधक वंशी यादव……महाराज अंधक के वंशज हैं।महाराज आहुक, उग्रसेन,देवक( देवकी के पिता), कंस, माता देवकी(श्रीकृष्ण की माँ)इत्यादि का जन्म हुआ है।ये”मथुरा प्रदेश” के शासक थे।ये”मथुरौट”भी कहलाते है।ये यादवों के क्षत्रप थे।इनकी सेना १०००००००एवं आचार्य ३००००० थे।
इस वंश के कुछ राजा इस तरह से हैं…
(3) भोज वंशी यादव—महाराज महाभोज के वंशज हैं।इस वंश मे महाराज विदर्भ,चेदिराज,दमघोष,शिशुपाल इत्यादि का जन्म हुआ है।ये “विदर्भ प्रदेश”के शासक थे।
(4) ग्वालवंशी यादव—- पवित्र ग्वाल बाल के वंशज। मूलतः यदुवंशी राजा गौड़ के वंशज हैं…..और मूलतः ग्वालवंशी यादव बिहार और यूपी के पूर्वाचंल इलाकों में पाऐ जाते हैं…
(5)..हैहय वंशी यादव—–महाराज सहस्रजीत के वंशजहैं। इस वंश मे हैहय,महिष्मान, सहस्रबाहु अर्जुन,तालजंघ इत्यादि का जन्म हुआ था।ये”माहिष्मति प्रदेश” के शासक थे।इस वंश के” सहस्रबाहु अर्जुन”सातों द्वीपों के एकछत्र सम्राट थे…हैहय वंश यदुवंश का सबसे पुराना वंश है जो रामायण काल में भी थे….अहीर वंश का उदय इसी वंश से हुआ था और आगे चल इसी अहीर वंश और बाकी के वंशों से सम्मलित हो वृष्णी वंश बना था जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ था…इस कुल के राजा:
महाक्षत्रप राजा ईश्वरसेन अहीर,कलचुरी वंश के अहीर शासक, तथासाउथ के त्रैकुटा सामराज्य के अहीर शासक भी इसी कुल के थे।
महाराज यदु द्वारा सर्प का संहार किए जाने के कारण उन्हें”अहीर” की उपाधि भी दी गई थी…कालिया नाग को हराने के बाद भगवान…श्रीकृष्ण को भी “अहीर”कहा जाता है..यादवों को “माधव” ,”आभीर(fearless)”,”अहीर”और “वार्ष्णेय”भी कहा जाता है। इन सभी वंशो को मिलाकर ही यदुवंश कहा जाता है….इस तरह से यादव वैदिक क्षत्रिय हैं..चन्द्रवंश शाखा के यदुवंशी क्षत्रिय हैं…यादव या यदु हमारा कुल है वंश है… और अहीर (अर्थात आभीर जिसका अर्थ है…निर्भीक/निडर…किसी से भी न डरने वाले)…हमारी उपाधि है….
(श्री मद भागवत महापुराण/शुकसागर,गर्ग संहिता,महाभारत के आधार पर…)
॥ जय द्वारिकाधीश ॥
॥ जय यदुवंशी क्षत्रिय ॥
yadav se uncha koi nahi yadav hi duniya ki sabse badi jati hai isi se duniya ki sari jati nikli hai hai devtaon ka vansh hai rakshaso ka nahi samjhe jai yadav jai madhav
एक दम सही लेख है इन ब्राह्मणों ने पुष्पमित्र सुंग (बृहद्रथ की हत्यारा) को राजा बनाकर उसी समय समस्त वेद पुराणों में अत्यधिक परिवर्तन कर उसे ब्राह्मणप्रद बनाया ताकि इन ब्राह्मणों को बिना परिश्रम के नान टैक्सेबल मुद्रा मिलती रहे।
और लोग इन चूतियों और कलंकीतो के वंशजों को श्रेष्ठ मानने की गलती करते रहें। इन ब्राह्मणों ने श्रीकृष्ण जैसे महानायक से रासलीला शब्द जोड़ा जबकि श्रीकृष्ण अतिपवित्र और कर्तव्यपरायण थें। उनका रासलीला से कोई सम्बन्ध नही था। राधा व श्रीकृष्ण का प्रेम माता और पुत्र के तरह का स्नेह था। श्रीकृष्ण राधा से ज्ञान नीति धर्म और कर्म की सदैव शिक्षा लेते थें। इसलिए श्रीकृष्ण सर्वशक्ति सम्पन्न होने के वावजूद राधा से विवाह नही किये।क्योकि वो प्रेमिका नही अपितु माता समान थीं। जिसे लोगों को समझना चाहिए। इसी लिए युधिष्ठिर के अग्र पूजा में समस्त श्रेष्ठजनों में श्रीकृष्ण को सबसेश्रेष्ठ मानकर अग्रपूजा के अंर्तगत उनका पैर धूला गया व उनकी पूजा की गई।
श्रीकृष्ण ने सदैव कर्म को प्रधान बताया । और उंन्होने व्यक्ति की चार श्रेणी की योग्यता का वर्णन किया था। जिसे ब्राह्मणों ने चार जाति बनाकर खुद श्रेष्ठ बन वैठे। और तो और पुष्पमित्र शुंग के समय में इन ब्राह्मणों ने लाभ उठाकर 8000 जातियां बना डालीं। ताकि कभी लोग संयुक्त न हो सकें। और इन ब्राह्मणों का ढोंग पाखण्ड चलता रहे। यही नही ब्राह्मणों ने स्वयं को ब्राह्मण देवता कहना शुरू कर दिया तो आज के विज्ञानं के युग में समाज ने इनको दैवीय आपदा समझ लिया । अब तो ज्यादातर लोग इन पाखण्डियों से दूरी बनानां शुरू कर दिए हैं। क्योकि इतिहास गवाह है जो इनसे सटा उसका पतन हुआ राजपूतों ने इनसे चिपकने की भूल मध्यकाल में की थी जिसके कारण इन ब्राह्मणों ने मुस्लिमो से उनके वहां रिश्ता जोड़ कर उनका पतन कर डालें। जिसका राणा प्रताप जैसे सुरवीरों के परिवार ने सदैव विरोध किया।
मैंने गहराई से अध्ययन किया तब पाया कि ब्राह्मण यादवों से क्यों जलते हैं कारण इस प्रकार है
*नए रिसर्च के अनुसार*
परशुराम का मूल निवास स्थान ईरान था।
यानि कि ब्राह्मणों का मूल स्थान ईरान था।
परशुराम की माता रेणुका चरित्रहीन थीं । और परशुराम जमदाग्नि के सिर्फ कहने भर के पुत्र थें वास्तव में परशुराम सहस्त्रार्जुन नामक यदुवंशी क्षत्रीय(हैहय वंशी) राजा के नाजायज औलाद थें।
और परशुराम हमेशा यदुवंशी क्षत्रियों से भागे भागे फिरते थें।
और इसी कारण वो भारत में रह नही पाएं।
और जब श्रीकृष्ण के कई पीढ़ी के बाद इनके वंशजों को ( ब्राह्मणों) को भारत रहने का मौका मिला तो पहले तो लोग यहां फुट डालने की निरंतर कोशिश करते रहें इनकी षणयंत्र पूर्ण रूप से चल तो नही पा रही थी। पर ये लोग निरंतर प्रयास करते रहें। और सम्राट अशोक के समय तो इन लोगों को जैसे ग्रहण लग गया। न कोइ कथा सुनने वाला न कोई फ्री में दान देने वाला।क्योकि अशोक ने अहिंसा और सत्य के रास्ते पे चलकर बौद्ध धर्म अपना कर बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया। और बौद्ध धर्म अशोक के बाद उनके पुत्र कुणाल, कुणाल के पुत्र दशरथ, और दशरथ के पुत्र बृहद्रथ तक चलता रहा। समाज में शांति व शुकुन था। लेकिन ब्राह्मण अंदर ही अंदर अपना खेल खेल रहे थें। और इन ब्राह्मणों ने बृहद्रथ की हत्या पुष्पमित्र शुंग नामक ब्राह्मण से करा कर उसे राजा बना दीया। और बृहद्रथ के समय मे बौद्धिष्टों की अति क्रूर तरीके से हत्याएं हुईं। और ब्राह्मणों ने उसी समय 8000 जतियों का निर्माण किया । और उसी समय वेद पुराणों की लेख में परिवर्तन कर उसको ब्राह्मणों के महिमा मण्डनकारी बनाया गया। और लोगों को डरा डरा कर उसी लेख को मनवाया गया। जो नही माने उनकी हत्या कर दी गयी। कटनी शहर उसी का एक उदाहरण है।
Gadhe Brahmano ka nhi Abheero ka niwas sthan Iran tha Aur Abheer log bahar se aaye the na ki brahman.
Aur Abheer ka Kabila tha caste nhi thi…..
Ye log lambe chaude gore chitte hote the…. local Arya kaale the aur gwale the…smjha
Abheer baad me bharat me aaye the aur local jaatio me mil gye jobki kaale the smjha.
Krishna vrishni kabile se the.
Gop ek caste thi.
Abheer ek dusra Kabila tha.
Aaj bhi Abheero ke vanshaj bhut si jaatio me paaye jaate hai…..Brahman sonar jat chamar koli etc.
Ye bhosdi ka chmar h jo yadav jatav name se hadoti kota ka smpadak h ye bhosdi ka chmar yadavo ko Bdnam krna chahta h sala sudra
Pahle rakshasi log agyani or Bhagwan virodhi the ab ye h inka Patan nischit hai
teri ma ka bhosda
krisna devta h
bhagwaan se dar be madherchod
आपकी सारी बाते मिथ्या और आपकी अपनी सोच है।
पहली बात मैं तो यादवो को ज्यादातर गोरा ही पाता हूँ दूसरी बात गीता हमारा सबसे पवित्र ग्रन्थ है उस ग्रन्थ की बातों को भी आप अपने विचारों से झुठला दे रहे है।
तीसरी बात छत्रिय कोई जाती नही थी उस समय के राजाओं और लड़ाकू जातियों को छत्रिय ही कहा जाता था।
वामन नाम का एक ब्राम्हण (जिसे विष्णु भगवान का अवतार कहते है) सभी आर्यों में तेज बुध्दीवान था , राजा बलि के दरबार पहुचा और राजा बली को दान में तिन कदम जगह मांगी।बलि ने जमिन समझकर जगह देने का वचन दिया। फिर वामन ने कपट पूर्वक राजा बलि से कहा की दो कदम मेरे जमीन पर है तिसरा कदम तुम्हारे गर्दन पर रखुंगा। तुमने वचन दिया है के मुझे तिन कदम जगह दोगे। जरा सोचो क्या किसी का पैर इतना बड़ा हो सकता था जो पुरी पृथ्वी को ढक ले और पुरी पृथ्वी पर कब्ज़ा हो ? उसने राजा बलि कि गर्दन पांव से कुचलकर मार दिया।
Abe sale ye jo btaya he isme saf dikf rha bakchodi khhudvse content bna ke dal diya he wo mere pass aaye me use gita mahabharat ramayan our harivansh puran our charo ved ka gyan deta hu faltu ka dalna band karo nahi to yad rkhna me bhi dal skta hu khhud se bna kar chutiya panti ka had kar diya he kam se kam bhagwan ke bare me bhi to mat bolo kis caste ki kya oukat he ue sab janta he chhtriya ke bare me jan lo unka vansaj nikal lo